पतंगा
शलभ, पतंगा या परवाना तितली जैसा एक कीट होता है। जीवविज्ञान श्रेणीकरण के हिसाब से तितलियाँ और पतंगे दोनों 'लेपीडोप्टेरा' वर्ग के प्राणी होते हैं। पतंगों की १.६ लाख से ज़्यादा क़िस्में (स्पीशीयाँ) ज्ञात हैं, जो तितलियों की क़िस्मों से लगभग १० गुना हैं। वैज्ञानिकों ने पतंगों और तितलियों को अलग बतलाने के लिए ठोस अंतर समझने का प्रयत्न किया है लेकिन यह सम्भव नहीं हो पाया है। अंत में यह बात स्पष्ट हुई है कि तितलियाँ वास्तव में रंग-बिरंगे पतंगों का एक वर्ग है जो भिन्न नज़र आने की वजह से एक अलग श्रेणी समझी जाने लगी हैं। अधिकतर पतंगे निशाचरता दिखलाते हैं (यानी रात को सक्रीय होते हैं), हालाँकि दिन में सक्रीय पतंगों की भी कई जातियाँ हैं।[1]
रोशनी के लिए आकर्षण
[संपादित करें]मनुष्य हमेशा से पतंगों का आग और अन्य रोशनियों के साथ आकर्षण-जैसा लगने वाला व्यवहार देखते आये हैं। पतंगों की इन हरकतों के लिए वैज्ञानिकों ने दो सम्भव कारण बताए हैं:[2]
- पतंगे उड़ते हुए चाँद की रोशनी का प्रयोग करते हैं। धरती के प्राणियों को अपने से बहुत दूर स्थित चाँद एक ही जगह नज़र आता है, जिस वजह से उड़ते हुए पतंगों को और चलते हुए मनुष्यों को चाँद अपने साथ-साथ चलता हुआ प्रतीत होता है। इस वजह से अगर कोई चलते हुए चाँद को अगर अपने से ठीक एक ही दिशा में रखे तो वह एक लकीर में बिलकुल सीधा चलेगा। इसी तरह पतंगे उड़ते हुए चाँद को अपने से एक ही दिशा में रखते हैं। पृथ्वी पर करोड़ों सालों से यह व्यवस्था उनको लाभ दे रही है। मानवी सभ्यता के साथ यह बदल गया। अब बहुत से कृत्रिम रोशनी के स्रोत हैं। लेकिन अगर कोई पतंगा किसी दिये को चाँद की जगह प्रयोग करते हुए उसे अपने से एक ही दिशा में रखता है तो सीधा उड़ने की बजाए वास्तव में उसके गोल-गोल उड़ता रहता है। उसे देखने वाले मनुष्यों को लगता है कि किसी रोशनी के पास चकराता हुआ यह पतंगा रोशनी से आकर्षित हो रहा है।
- कुछ मादा पतंगे अपने शरीर पर ऐसे रसायन बनातीं हैं जिस से अवरक्त प्रकाश (इंफ़्रारेड) उत्पन्न होता है। इस से नर पतंगे आकर्षित होते हैं। ठीक ऐसा ही अवरक्त प्रकाश आग से आता है, जिस कारणवश नर पतंगे दीयों-मोमबत्तियों से आकर्षित होते हैं।
भारतीय लोक-संस्कृति में
[संपादित करें]भारतीय उपमहाद्वीप की लोक संस्कृति में परवानों (पतंगों) के शमा (दिये) के लिए बेबस आकर्षण की तुलना अक्सर किसी प्रेमी की अपनी प्रेमिका के लिए आकर्षण से की गई है।[3] इसपर अनगिनत कवितायेँ लिखी गई हैं और गाने बने हैं, मसलन:
- शम्मा कहे परवाने से, परे चला जा,
- मेरी तरह जल जाएगा, पास नहीं आ
- फ़िल्म: 'कटी पतंग', गाना: 'प्यार दीवाना होता है'[4]
- वो अनजाना ढूंढती हूँ, वो दीवाना ढूंढती हूँ,
- जलाकर जो छुप गया है, वो परवाना ढूंढती हूँ
- फ़िल्म: 'तीसरी मंज़िल', गाना: 'ओ हसीना ज़ुल्फ़ों वाली'[5]
- उड़ ना जाए कभी क्या पता कोई भँवरा मुझे लूट के,
- भँवरा नहीं है मेरा नाम है परवाना
- फ़िल्म: 'जब प्यार किसी से होता है', गाना: 'ओ जान ना जाना'
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]- तितली
- जिप्सी शलभ
- शल्कपंखी गण (Lepidoptera)
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Butterflies and moths in Britain and Europe Archived 2013-09-21 at the वेबैक मशीन, David Carter, Roger Phillips, British Museum (Natural History), Heinemann, published in association with the British Museum (Natural History), 1982, ... Both of these concepts are in part true although butterflies are not really so distinct from moths and share with them many aspects of appearance and behaviour. Butterflies may be regarded as specialised day-flying moths ...
- ↑ How Come? in the NeighborhoodHow Come?, Kathy Wollard, Workman Publishing, 2007, ISBN 978-0-7611-4429-8, ... certain moths may be genuinely attracted to glowing lightbulbs. Female moths, they say, emit chemicals that give off infrared radiation and attract males ... other scientists say that moths aren't attracted to lights at all ... all about mistaken navigation ... apparently use the moon as a beacon ...
- ↑ Allied Chambers transliterated Hindi-Hindi-English dictionary Archived 2015-04-05 at the वेबैक मशीन, Henk W. Wagenaar, S. S. Parikh, D. F. Plukker, R. Veldhuijzen van Zanten, Allied Publishers, 1993, ISBN 978-81-86062-10-4, ... parvana ... a moth; (figurative) a dedicated lover ...
- ↑ India today international, Volume 5, Issues 1-12, Living Media International Ltd., 2006, ... All the songs sung by him have great intensity, be it Pyar diwana hota hai (Kati Patang) or ...
- ↑ Encyclopaedia of Hindi cinema Archived 2012-01-03 at the वेबैक मशीन, Encyclopaedia Britannica (India), Gulzar, Govind Nihalani, Saibal Chatterjee, Popular Prakashan, 2003, ISBN 978-81-7991-066-5, ... O haseena zulfonwali jaanejahan (Teesri Manzil) ...