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जनमसाखी

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जनमसाखी (संस्कृत: जन्मसाक्षी) उन रचनाओं को कहते हैं जो सिखों के प्रथम गुरु गुरु नानक का जीवनचरित हैं। पंजाबी साहित्य में जनमसाखियों का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है। गुरु नानक के देहान्त के बाद समय-समय पर ऐसी रचनाएँ होती रहीं हैं।[1]

विद्यालय जाते हुए बालक नानक
नानक के सिर पर सर्प द्वारा छाया करने का दृश्य देखकर राय बुलार का नतमस्तक होना
मक्का में गुरु नानक देव जी

व्यापक अर्थ में किसी भी महापुरुष के आध्यात्मिक जीवन वृत्तान्त को जनमसाखी कहते हैं, जैसे 'कबीर जी की जनमसाखी', रैदास जनमसाखी आदि। त्रिलोचन सिंह बेदी के अनुसार १६वीं-१७वीं शताब्दी में रची गयीं कुछ जनमसाखियाँ ये हैं-

  • पुरातन जनम साखी
  • मुख लेख : पुरातन जनम साखी
  • शंभूनाथ वाली जनम पत्री
  • जनम साखी श्री गुरू नानक देव जी
  • भाई मनी सिंघ वाली जनम साखी
  • आदि साखीआं बाबे कीआं,
  • सोढी मिहरबान वाली जनम साखी श्री गुरू नानक देव जी,
  • पैड़ा मोखा जां भाई बाले वाली जनमसाखी,
  • बिधी चंद जां हंदालीआ वाली जनमसाखी,
  • सतिगुर जी दे मूहि दीआं जनमसाखीआं,
  • जनमसाखी श्री मिहरवान जी की,
  • जनमसाखी भगत कबीर जी की।`

इनमें अधिक महत्वपूर्ण साखियाँ ये हैं- 1) पुरातन जनमसाखी, 2) आदि साखीआं, 3) मिहरबान वाली जनमसाखी, 4) भाई बाले वाली जनमसाखी, 5) गिआन रतनावली। अनुमान लगाया जाता है कि इन जनमसाखियों की गिनती 20-30 रही होगी पर बाद में इनकी संख्या 575 हो गई है।

सन्दर्भ

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  1. Nikky-Guninder Kaur Singh (2011), Sikhism: An Introduction, IB Tauris, ISBN 978-1848853218, pages 1-8