जगन्नाथ
जगन्नाथ (संस्कृत: जगन्नाथ लुआ त्रुटि मॉड्यूल:Lang में पंक्ति 1665 पर: attempt to index field 'engvar_sel_t' (a nil value)। ओड़िया: ଜଗନ୍ନାଥ) हिन्दू भगवान विष्णु के पूर्ण कला [[अवतार]श्रीकृष्ण का ही एक रूप हैं। इनका एक बहुत बड़ा मन्दिर ओड़िशा राज्य के पुरी शहर में स्थित है। इस शहर का नाम जगन्नाथ पुरी से निकल कर पुरी बना है। यहाँ वार्षिक रूप से रथ यात्रा उत्सव भी आयोजित किया जाता है। पुरी की गिनती हिन्दू धर्म के चार धाम में होती है।
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जगन्नाथ (दायें) बलभद्र (बायें) तथा सुभद्रा (मध्य में)
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एक छोटे आकार का altar, जगन्नाथ, बलभद्र तथा देवी सुभद्रा के साथ
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भुवनेश्वर में रथ यात्रा महोत्सव
मूर्तियों की उत्पत्ति
[संपादित करें]जगन्नाथ से जुड़ी दो रोचक कहानियाँ हैं। पहली कहानी में श्रीकृष्ण अपने परम भक्त राज इन्द्रद्युम्न के सपने में आए और उन्हे आदेश दिया कि पुरी के दरिया किनारे पर पडे एक पेड़ के तने में से वे श्री कृष्ण का विग्रह बनाएँ। राजा ने इस कार्य के लिए बढ़ई की तलाश शुरु की। कुछ दिनो बाद एक रहस्यमय बूढ़ा ब्राह्मण आया और उसने कहा कि प्रभु का विग्रह बनाने की जिम्मेदारी वो लेना चाहता है। लेकिन उसकी एक शर्त थी - कि वो विग्रह बन्द कमरे में बनायेगा और उसका काम खत्म होने तक कोई भी कमरे का द्वार नहीं खोलेगा, नहीं तो वो काम अधूरा छोड़ कर चला जायेगा। ६-७ दिन बाद काम करने की आवाज़ आनी बन्द हो गई तो राजा से रहा न गया और ये सोचते हुए कि ब्राह्मण को कुछ हो गया होगा, उसने द्वार खोल दिया। पर अन्दर तो सिर्फ़ भगवान का अधूरा विग्रह ही मिला और बूढ़ा ब्राह्मण लुप्त हो चुका था। तब राजा को आभास हुआ कि ब्राह्मण और कोई नहीं बल्कि देवों का वास्तुकार विश्वकर्मा था। राजा को आघात हो गया क्योंकि विग्रह के हाथ और पैर नहीं थे और वह पछतावा करने लगा कि उसने द्वार क्यों खोला। पर तभी वहाँ पर ब्राह्मण के रूप में नारद मुनि पधारे और उन्होंने राजा से कहा कि भगवान इसी स्वरूप में अवतरित होना चाहते थे और दरवाजा खोलने का विचार स्वयं श्री कृष्ण ने राजा के दिमाग में डाला था। इसलिए उसे आघात चिंतन करने का कोइ कारण नहीं है और वह निश्चिन्त हो जाए।[1]
दूसरी कहानी महाभारत में से है जो बताती है कि जगन्नाथ के रूप का रहस्य क्या है। माता यशोदा, सुभद्रा और देवकी जी, वृन्दावन से द्वारका आये हुए थे। रानियों ने उनसे निवेदन किया कि वे उन्हे श्री कृष्ण की बाल लीलाओं के बारे में बताएँ। सुभद्रा जी द्वार पर पहरा दे रही थी, कि अगर कृष्ण और बलराम आ जाएंगे तो वो सबको आगाह कर देगी। लेकिन वो भी कृष्ण की बाल लीलाओं को सुनने में इतनी मग्न हो गई, कि उन्हे कृष्ण बलराम के आने का विचार ही नहीं रहा। दोनो भाइयों ने जो सुना, उस से उन्हे इतना आनन्द मिला की उनके बाल सीधे खडे हो गए, उनकी आँखें बड़ी हो गई, उनके होठों पर बहुत बड़ा स्मित छा गया और उनके शरीर भक्ति के प्रेमभाव वाले वातावरण में पिघलने लगे। सुभद्रा बहुत ज्यादा भाव विभोर हो गई थी इस लिए उनका शरीर सबसे ज़्यादा पिघल गया (और इसी लिए उनका कद जगन्नाथ के मन्दिर में सबसे छोटा है)। तभी वहाँ नारद मुनि पधारे और उनके आने से सब लोग वापस आवेश में आएँ। श्री कृष्ण का ये रूप देख कर नारद बोले कि "हे प्रभु, आप कितने सुन्दर लग रहे हो। आप इस रूप में अवतार कब लेंगे?" तब कृष्ण ने कहा कि कलियुग में वो ऐसा अवतार लेंगे और उन्होंने ने कलियुग में राजा इन्द्रद्युम्न को निमित बनाकर जगन्नाथ अवतार लिया।[2]
संदर्भ
[संपादित करें]- ↑ "Jagannath Puri Rath Yatra 2020 Hindi: जगन्नाथ मंदिर में छुआचात क्यों नहीं है?". S A NEWS (अंग्रेज़ी में). 2020-06-23. अभिगमन तिथि 2020-06-23.
- ↑ "...तो इसीलिए आज भी अधूरी है पुरी के जगन्नाथ की मूर्ति". NDTVIndia. अभिगमन तिथि 2020-06-26.
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]विकिमीडिया कॉमन्स पर जगन्नाथ से सम्बन्धित मीडिया है। |
- https://web.archive.org/web/20090619060852/http://jagannath.nic.in/
- https://web.archive.org/web/20090611041759/http://rathjatra.nic.in/
- https://web.archive.org/web/20090430175801/http://rathayatra.co.uk/
- https://web.archive.org/web/20110202173204/http://jagannathtemplepuri.com/
- https://web.archive.org/web/20120320103807/http://www.srijangatha.com/?pagename=prasangvash2_13jul2k10 (समन्वय के देवता दारुब्रह्म श्रीजगन्नाथ : डॉ हरेकृष्ण मेहेर)