आग और धुआंचतुरसेन शास्त्री द्वारा रचित उपन्यास है। इसका प्रकाशन "प्रभात प्रकाशन", (दिल्ली) द्वारा १९७५ ई॰ में किया गया।
"इंगलैंड में आक्सफोर्डशायर के अन्तर्गत चर्चिल नामक स्थान में सन् १७३२ ईस्वी की ६ दिसम्बर को एक ग्रामीण गिर्जाघर वाले पादरी के घर में एक ऐसे बालक ने जन्म लिया जिसने आगे चलकर भारत में अंग्रेजी राज्य की स्थापना का महत्त्वपूर्ण कार्य किया। इस बालक का नाम वारेन हेस्टिंग्स पड़ा। बालक के पिता पिनासटन यद्यपि पादरी थे, परन्तु उन्होंने हैस्टर वाटिन नामक एक कोमलांगी कन्या से प्रेम-प्रसंग में विवाह कर लिया। उससे उन्हें दो पुत्र प्राप्त हुए। दूसरे प्रसव के बाद बीमार होने पर उसकी मृत्यु हो गई। पिनासटन दोनों पुत्रों को अपने पिता की देख-रेख में छोड़कर वहां से चले गए और कुछ दिन बाद दूसरा विवाह कर वेस्ट-इन्डीज में पादरी बनकर जीवनयापन करने लगे।"...(पूरा पढ़ें)
कायाकल्पप्रेमचंद द्वारा रचित उपन्यास है। पुनर्जन्म की कथा पर आधारित इस उपन्यास का प्रकाशन सन् १९५६ ई॰ में बनारस के खण्डेलवाल प्रेस द्वारा किया गया था।
"दोपहर का समय था, पर चारों तरफ अंधेरा था। आकाश में तारे छिटके हुए थे। ऐसा सन्नाटा छाया हुआ था मानो संसार से जीवन का लोप हो गया हो। हवा भी बन्द हो गयी थी। सूर्यग्रहण लगा हुआ था। त्रिवेणी के घाट पर यात्रियों की भीड़ थी---ऐसी भीड़ जिसकी कोई उपमा नहीं दी जा सकती। वे सभी हिन्दू, जिनके दिल में श्रद्धा और धर्म का अनुराग था, भारत के हर एक प्रान्त से इस महान् अवसर पर त्रिवेणी की पावन धारा में अपने पापों का विसर्जन करने के लिए आ पहुँचे थे, मानो उस अँधेरे में भक्ति और विश्वास ने अधर्म पर छापा मारने के लिए अपनी असंख्य सेना सजायी हो। लोग इतने उत्साह से त्रिवेणी के संकरे घाट की ओर गिरते-पड़ते लपके चले जाते थे कि यदि जल की शीतल धारा की जगह अग्नि का जलता हुआ कुण्ड होता, तो भी लोग उसमें कूदते हुए जरा भी न झिझकते!..."(पूरा पढ़ें)
"विद्वानों की दुनिया में आजकल आस्तिक और नास्तिक का पुराना झगड़ा फिर उठ खड़ा हुआ है। यह झगड़ा कभी शान्ति होने वाला तो है नहीं, हाँ, उसके रूप बदलते रहते हैं। आज के पचास साल पहले, जब विज्ञान ने इतनी उन्नति न की थी, और संसार में बिजली और भाप और भाँति भाँति के यन्त्रों की सृष्टि होने लगी, तो स्वभावतः मनुष्य को अपने बल और बुद्धि पर गर्व होने लगा, और अनन्त से जो अनीश्वरवाद या जड़वाद चला आ रहा है, उसे बहुत कुछ पुष्टि मिली। विद्वानों ने हमेशा ईश्वर के अस्तित्व में सन्देह किया है।..."(पूरा पढ़ें)
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