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फ़रवरी की निर्वाचित पुस्तक
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सप्ताह की पुस्तक
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कायाकल्प प्रेमचंद द्वारा रचित उपन्यास है। पुनर्जन्म की कथा पर आधारित इस उपन्यास का प्रकाशन सन् १९५६ ई॰ में बनारस के खण्डेलवाल प्रेस द्वारा किया गया था।


"दोपहर का समय था, पर चारों तरफ अंधेरा था। आकाश में तारे छिटके हुए थे। ऐसा सन्नाटा छाया हुआ था मानो संसार से जीवन का लोप हो गया हो। हवा भी बन्द हो गयी थी। सूर्यग्रहण लगा हुआ था। त्रिवेणी के घाट पर यात्रियों की भीड़ थी---ऐसी भीड़ जिसकी कोई उपमा नहीं दी जा सकती। वे सभी हिन्दू, जिनके दिल में श्रद्धा और धर्म का अनुराग था, भारत के हर एक प्रान्त से इस महान् अवसर पर त्रिवेणी की पावन धारा में अपने पापों का विसर्जन करने के लिए आ पहुँचे थे, मानो उस अँधेरे में भक्ति और विश्वास ने अधर्म पर छापा मारने के लिए अपनी असंख्य सेना सजायी हो। लोग इतने उत्साह से त्रिवेणी के संकरे घाट की ओर गिरते-पड़ते लपके चले जाते थे कि यदि जल की शीतल धारा की जगह अग्नि का जलता हुआ कुण्ड होता, तो भी लोग उसमें कूदते हुए जरा भी न झिझकते!..."(पूरा पढ़ें)


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पूर्ण पुस्तक
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चोखे चौपदे अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' के खड़ी बोली के हजार चौपदों का संग्रह है। इसका प्रकाशन "खड़गविलास प्रेस", (पटना) द्वारा १९२४ ई॰ में किया गया था।

जो किसी के भी नहीं बाँधे बँधे ।
प्रेमबंधन से गये वे ही कसे॥
तीन लोकों में नही जो बस सके।
प्यारवाली आँख में वे ही बसे ॥

पत्तियों तक को भला कैसे न तब।
कर बहुत ही प्यार चाहत चूमती ॥
साँवली सूरत तुम्हारी ​साँवले।
जब हमारी आँख में है घूमती॥

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सहकार्य

रचनाकार
रचनाकार

चतुरसेन शास्त्री (26 अगस्त 1891 — 2 फ़रवरी 1960) हिंदी भाषा के उपन्यासकार थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:

  1. आग और धुआं, औपनिवेशिक दौर के भारत के इतिहास पर आधारित उपन्यास
  2. वैशाली की नगरवधू, आम्रपाली के जीवन पर आधारित उपन्यास
  3. देवांगना, आस्था और प्रेम का धार्मिक कट्टरता और घृणा पर विजय का उपन्यास
  4. धर्म के नाम पर, धर्म के नाम पर की जाने वाली कुरीतियों पर प्रहार करता निबंध-संग्रह
  5. मेरी प्रिय कहानियाँ, कहानी संग्रह

आज का पाठ

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जड़वाद और आत्मवाद प्रेमचंद द्वारा रचित साहित्य का उद्देश्य का एक अंश है जिसका प्रकाशन जुलाई १९५४ ई॰ में इलाहाबाद के हंस प्रकाशन द्वारा किया गया था।

"विद्वानों की दुनिया में आजकल आस्तिक और नास्तिक का पुराना झगड़ा फिर उठ खड़ा हुआ है। यह झगड़ा कभी शान्ति होने वाला तो है नहीं, हाँ, उसके रूप बदलते रहते हैं। आज के पचास साल पहले, जब विज्ञान ने इतनी उन्नति न की थी, और संसार में बिजली और भाप और भाँति भाँति के यन्त्रों की सृष्टि होने लगी, तो स्वभावतः मनुष्य को अपने बल और बुद्धि पर गर्व होने लगा, और अनन्त से जो अनीश्वरवाद या जड़वाद चला आ रहा है, उसे बहुत कुछ पुष्टि मिली। विद्वानों ने हमेशा ईश्वर के अस्तित्व में सन्देह किया है।..."(पूरा पढ़ें)


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